अपना शहर – Hindi Poetry
“ये क्या जगह है दोस्तो, ये कौन सा दयार है| हद-ऐ-निगाह तक जहां ग़ुबार ही ग़ुबार है||” – ‘शहरयार’ जी की ये पंक्तियाँ एक शहरी इंसान की भावनाएं व्यक्त करने के लिए काफ़ी है| सपने दिखाता शहर, ज़िंदगी को समजने, समजाने के बड़े अलग ढंग जानता व आज़माता है| हिसाब का पक्का शहर हमें जो कुछ भी देता है, सूद समेत वापस भी लेता है| यही उसका तरीका है और यही उसका चलन भी!
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